Tuesday, November 16, 2021

नर में नारायण

हर पल, हर क्षण चरित्र बदलते हैं 
कभी कितने सबल, कितने सक्षम 
मानो हर वरदान मुट्ठी में लिए चलते हैं, 
समेटे कलायें सारी, वो विराट रूप
वो नरसिंह अवतार से दीखते हैं!
कभी कितने निरुपयोगी, कितने क्रिया-हीन हैं 
मानो शेषशैय्या पर चिर निंद्रा में विलीन हैं! 
कभी तुलसीवन में एकाकी, श्रापित सालिग्राम से जड़, दोषी नज़र आते हैं 
और कभी उसी वृन्दावन में 
रात को अनेक प्रतियाँ बना किवदंत रास रचाते हैं, 
वो नृत्य जो हरी-श्रृंगार के फूल से हैं,
रात को खिलते हैं, महकते हैं, 
पर उजाले में अंतर्ध्यान हो जाते हैं 
और कभी फलीभूत न होते!
केवल मनुष्य हो कर 
भला इतने रूप कैसे ले पाते हैं,
हम सभी तो नारायण हैं 
बस अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं !!

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