Sunday, September 20, 2015

'Past', the sand in my eyes! अतीत की रेत मेरी आँखों में!

अतीत की रेत मेरी आँखों में!

आज पुरानी तस्वीरों में
खुद को ढूंढ रहा हूँ
तस्वीरें वक़्त के साथ
आगे निकल गयीं
मैं अब भी वहीँ खड़ा
मिट्टी खोद रहा हूँ !

अब ये तस्वीरें मुझे
बुलातीं हैं
पर मैं अतीत से निकल
वर्तमान में आने से डरता हूँ !

तस्वीरों में वो ऑंखें
जिन्हे देखकर एहसास होता है
जैसे मैं उन्हें पल भर भी
नहीं भूला,
आज भी वो सारे भाव
एक क्षण में ताज़ा
हो जाते हैं,
उन आँखों का नाम
अब मुझे याद नहीं
पर आज मैं उनसे
आँख नहीं मिला सकता
क्योंकि अब भी
मुझे उनकी परवाह है!
उन आँखों को
तब भी मुझसे
एक उम्मीद थी
और शायद
आज वो मुझे
उस पर खरा उतरा
देखना चाहेंगी!
कैसे मैं बताऊँगा उन्हें
कि मैं कहीं
छूट गया,
कि मैं वो हीरा नहीं
जो वो सोचती थी
कभी निकलेगा,
कैसे मैं बताऊँगा उन्हें
की मैं वो सीपी हूँ
जिससे मोती की
उम्मीद तो थी
पर खाली निकली!
और अब
कोई और आशा नहीं
किसी उम्मीद का छलावा नहीं!

इसीलिए इस अतीत
की रेत से ही
जी बहला लेता हूँ !

शायद उन आँखों
की चमक देखने को
एक और जन्म लेना होगा!!





‘Past’ the sand in my eyes!

Today in the old pictures
I found myself,
with time
photos have overtaken,
While I stood still,
am still digging the sand of past!

Now these pictures,
invite me out of the past,
but I 'm afraid
to come into the present!

Those eyes in the pictures
When I see,
I  realize a moment
I have not forgotten,
all those expressions still fresh,
name of those eyes
I do not remember 
But  today, I can not
See them in eye 
because still I do care about them!

Those eyes may still have a hope 
and perhaps today
I lived up to that 
would like to see! 
How do I tell them 
somewhere that I left,
that am no diamond ,
which they used to think 
it will come,
How I tell them that
am the pearl 
That was in the offing 
But oyster turned empty out! 

And now there is no more hope 
That's why the sand from the past caresses,
Maybe those eyes 
to see them glow
of another will be born !!


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