यार! एक बार.. आ जाओ,
और कैसे बुलाऊँ बता जाओ!
ये आवाज़ मेरी नहीं,
उन लम्हों की है जो कहानी बन गए,
सुनलो वो कहानी,
या अपनी ज़ुबानी
फिर से सुना जाओ,
यार! एक बार.. आ जाओ,
और कैसे बुलाऊँ बता जाओ!
अब भी खुदा है
इन दीवारों पर तुम्हारा नाम
पर सूरत धुंधला गयी है
एक बार... झलक दिखला जाओ,
यार! एक बार.. आ जाओ,
और कैसे बुलाऊँ बता जाओ!
यूँ तो इस मशीनी ज़िन्दगी में
पहले भी बहुत था
और बाद में भी बहुत है,
पर उस साथ गुज़ारे वक़्त
की बात ही कुछ और है,
गर नहीं है... तो मुझे ही समझा जाओ,
यार! एक बार.. आ जाओ,
और कैसे बुलाऊँ बता जाओ!
होंगे कुछ शिकवे भी
जो यहीं जन्मे थे
वो थामते होंगे कदम तुम्हारे,
यकीं मानो... उनसे निजाद भी यहीं है
आओ उन्हें भुला जाओ,
यार! एक बार.. आ जाओ,
और कैसे बुलाऊँ बता जाओ!
अब किससे पर्दा है
और क्या दिखाना है
हयात के उस मोड़ पर हैं
जहाँ इसे रिसने से बचाना है,
मेरी मुठ्ठी में कुछ बाकि है
कुछ तुम और मिला जाओ
यार! एक बार.. आ जाओ,
और कैसे बुलाऊँ बता जाओ!.......
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