प्लास्टिक
कहते हैं सभी कि सत्य अटल है
फिर क्यों ये समस्या इतनी जटिल है
अपने जीवन को सुविधापूर्ण बनाने में तो कोई हर्ज़ नहीं
पर क्या इस सुख की इच्छा से बढ़कर कोई फ़र्ज़ नहीं?
अपनी अभिलाषायों को अर्जित करना
ही होती है विकास की पहचान
पर अपने इस अभियान में
बहुत कुछ भूल जाता है मनुष्य अनभिज्ञ, नादान!
जीवन को सरल करने को ही खोजा प्लास्टिक
और आज हमारी ज़िन्दगी ही हो गयी प्लास्टिक,
जन्म के साथ ही जीवन में प्लास्टिक अवतरित हो जाता है,
आजकल तो गर्भनाल को भी प्लास्टिक से बाँधा जाता है,
प्लास्टिक की नैप्पी, प्लास्टिक का बिछौना,
प्लास्टिक की बोतल, प्लास्टिक का खिलौना,
किताब रखने का बस्ता भी प्लास्टिक
और उसे पढ़ने का चश्मा भी प्लास्टिक
बस का पास भी प्लास्टिक
रजाई की कपास भी प्लास्टिक
शीशी दवाई की प्लास्टिक
पर्स में कमाई भी प्लास्टिक
प्लास्टिक का कंप्यूटर, प्लास्टिक की कलम
प्लास्टिक की नलियों के बीच निकला दम
प्लास्टिक के फ्रेम में टंगी फोटो पर प्लास्टिक का हार,
तर्पण में प्लास्टिक की कैन से बहे गंगाजल की धार!
हमने तो प्लास्टिक का अंतरिक्ष यान तक बना डाला
ये सोचकर कि प्लास्टिक हमें दूर तक ले जायेगा,
पर भूल गए कि हम न रहेंगे, तुम न रहोगे
सिर्फ प्लास्टिक ही रह जायेगा!
पहुंचना चाहते हैं स्वर्ग बनाकर प्लास्टिक की सीढ़ी को
नहीं सोचा क्या मूहँ दिखाएंगे अपनी भावी पीढ़ी को
मनुष्य नश्वर है, अल्पकालिक है
और प्लास्टिक मानों अमर, सदैव
जब पृथ्वी पर ही नहीं, सभी गृहों पर, अंतरिक्ष में
रह जायेगा सिर्फ प्लास्टिक दैव
तो क्या वो प्लास्टिक काल कहलायेगा?
पर वो देखने को कौन रह जायेगा!
तो सोचें क्या होगा समय के उस पार
जब प्लास्टिक काल में मनुष्य पहुंचेगा यम के द्वार
चित्रगुप्त बैठे होंगे, मनुष्य करेगा अपनी गुहार
पर चित्रगुप्त टस से मस न होंगे
न चेहरे पर कोई विकार
करेगा पूजा जलाकर प्लास्टिक का दिया वो
जब मनुष्य की जाएँगी सारी विनती बेकार
फिर पिघलेंगे चित्रगुप्त, मन से नहीं तन से,
तब समझेगा कि चित्रगुप्त तो हैं प्लास्टिक की एक प्रकार
प्लास्टिक के यम, प्लास्टिक का पौंड्रक
फिर बैकुंठ पहुँच करेगा मनुहार
पर वहां भी प्लास्टिक की लक्ष्मी, प्लास्टिक के शेषनाग
यहाँ तक कि नारायण भी प्लास्टिक
तब वहां से भागेगा मनुष्य करके हाहाकार
फिर नारद उसको समझायेंगे
सुनकर उसकी चीख पुकार
“तुमने प्लास्टिक की दुनिया बसाई
प्लास्टिक का सारा संसार,
कृत्रिम या नकली ही प्लास्टिक का अर्थ है
तुम्हारा यूं लोक-परलोक फिरना व्यर्थ है
जो तुमने देखा, सब नकली था
अब तो सुधर जायो यार
त्याग दो प्लास्टिक
स्वयं करो अपना उद्धार!
आज सरल नहीं है
खोजना प्लास्टिक का विकल्प
पर करना होगा हम सबको
एक दृढ़ संकल्प,
क्या कागज़ का उपयोग प्लास्टिक से बेहतर है?
जलवायु परिवर्तन के समय कठिन देना इसका उत्तर है!
प्लास्टिक न हो जाये सागर में जीवों से ज़्यादा
इसके लिए खुद से ही करना होगा पक्का वादा!
शायद सुविधा को ताक पे रखना होगा
मानव को अग्नि की पैनी धार पे चलना होगा
जब अपनी ही चमड़ी से
हम जूते नहीं बनाते,
तो वर्तमान में सुविधा के लिए
क्यों भविष्य को नोच-खाते?
मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु है
तो फिर क्या है उपाय ?
मानव ही है मानव का मित्र भी
ये भी न भूला जाय!
हम ही निकालेंगे इसका भी हल
फिर ये समस्या भी लगेगी सरल,
तब तक
करो कटौती, पुन: प्रयोग
पुन: चक्रित भी कर डालो
जब तक निकले न बड़ा हल
छोटी युक्तियाँ निकाल डालो,!
इस उत्कर्ष के दौर में
न हताश हो, न निराश हो
न बिखर अभी, न उदास हो
अब हो गया है शामिल तू
आंदोलन इस ख़ास में
अब तो बस हर्ष हो,
अब तो बस उल्लास हो!
कहते हैं सभी कि सत्य अटल है
फिर क्यों ये समस्या इतनी जटिल है
अपने जीवन को सुविधापूर्ण बनाने में तो कोई हर्ज़ नहीं
पर क्या इस सुख की इच्छा से बढ़कर कोई फ़र्ज़ नहीं?
अपनी अभिलाषायों को अर्जित करना
ही होती है विकास की पहचान
पर अपने इस अभियान में
बहुत कुछ भूल जाता है मनुष्य अनभिज्ञ, नादान!
जीवन को सरल करने को ही खोजा प्लास्टिक
और आज हमारी ज़िन्दगी ही हो गयी प्लास्टिक,
जन्म के साथ ही जीवन में प्लास्टिक अवतरित हो जाता है,
आजकल तो गर्भनाल को भी प्लास्टिक से बाँधा जाता है,
प्लास्टिक की नैप्पी, प्लास्टिक का बिछौना,
प्लास्टिक की बोतल, प्लास्टिक का खिलौना,
किताब रखने का बस्ता भी प्लास्टिक
और उसे पढ़ने का चश्मा भी प्लास्टिक
बस का पास भी प्लास्टिक
रजाई की कपास भी प्लास्टिक
शीशी दवाई की प्लास्टिक
पर्स में कमाई भी प्लास्टिक
प्लास्टिक का कंप्यूटर, प्लास्टिक की कलम
प्लास्टिक की नलियों के बीच निकला दम
प्लास्टिक के फ्रेम में टंगी फोटो पर प्लास्टिक का हार,
तर्पण में प्लास्टिक की कैन से बहे गंगाजल की धार!
हमने तो प्लास्टिक का अंतरिक्ष यान तक बना डाला
ये सोचकर कि प्लास्टिक हमें दूर तक ले जायेगा,
पर भूल गए कि हम न रहेंगे, तुम न रहोगे
सिर्फ प्लास्टिक ही रह जायेगा!
पहुंचना चाहते हैं स्वर्ग बनाकर प्लास्टिक की सीढ़ी को
नहीं सोचा क्या मूहँ दिखाएंगे अपनी भावी पीढ़ी को
मनुष्य नश्वर है, अल्पकालिक है
और प्लास्टिक मानों अमर, सदैव
जब पृथ्वी पर ही नहीं, सभी गृहों पर, अंतरिक्ष में
रह जायेगा सिर्फ प्लास्टिक दैव
तो क्या वो प्लास्टिक काल कहलायेगा?
पर वो देखने को कौन रह जायेगा!
तो सोचें क्या होगा समय के उस पार
जब प्लास्टिक काल में मनुष्य पहुंचेगा यम के द्वार
चित्रगुप्त बैठे होंगे, मनुष्य करेगा अपनी गुहार
पर चित्रगुप्त टस से मस न होंगे
न चेहरे पर कोई विकार
करेगा पूजा जलाकर प्लास्टिक का दिया वो
जब मनुष्य की जाएँगी सारी विनती बेकार
फिर पिघलेंगे चित्रगुप्त, मन से नहीं तन से,
तब समझेगा कि चित्रगुप्त तो हैं प्लास्टिक की एक प्रकार
प्लास्टिक के यम, प्लास्टिक का पौंड्रक
फिर बैकुंठ पहुँच करेगा मनुहार
पर वहां भी प्लास्टिक की लक्ष्मी, प्लास्टिक के शेषनाग
यहाँ तक कि नारायण भी प्लास्टिक
तब वहां से भागेगा मनुष्य करके हाहाकार
फिर नारद उसको समझायेंगे
सुनकर उसकी चीख पुकार
“तुमने प्लास्टिक की दुनिया बसाई
प्लास्टिक का सारा संसार,
कृत्रिम या नकली ही प्लास्टिक का अर्थ है
तुम्हारा यूं लोक-परलोक फिरना व्यर्थ है
जो तुमने देखा, सब नकली था
अब तो सुधर जायो यार
त्याग दो प्लास्टिक
स्वयं करो अपना उद्धार!
आज सरल नहीं है
खोजना प्लास्टिक का विकल्प
पर करना होगा हम सबको
एक दृढ़ संकल्प,
क्या कागज़ का उपयोग प्लास्टिक से बेहतर है?
जलवायु परिवर्तन के समय कठिन देना इसका उत्तर है!
प्लास्टिक न हो जाये सागर में जीवों से ज़्यादा
इसके लिए खुद से ही करना होगा पक्का वादा!
शायद सुविधा को ताक पे रखना होगा
मानव को अग्नि की पैनी धार पे चलना होगा
जब अपनी ही चमड़ी से
हम जूते नहीं बनाते,
तो वर्तमान में सुविधा के लिए
क्यों भविष्य को नोच-खाते?
मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु है
तो फिर क्या है उपाय ?
मानव ही है मानव का मित्र भी
ये भी न भूला जाय!
हम ही निकालेंगे इसका भी हल
फिर ये समस्या भी लगेगी सरल,
तब तक
करो कटौती, पुन: प्रयोग
पुन: चक्रित भी कर डालो
जब तक निकले न बड़ा हल
छोटी युक्तियाँ निकाल डालो,!
इस उत्कर्ष के दौर में
न हताश हो, न निराश हो
न बिखर अभी, न उदास हो
अब हो गया है शामिल तू
आंदोलन इस ख़ास में
अब तो बस हर्ष हो,
अब तो बस उल्लास हो!