Thursday, March 30, 2023

SARS Cov 2 से संक्रमित स्वास्थ्य कर्मियों के बीच संक्रमण संचरण कारक और उनके बारे में धारणा

SARS Cov 2 से संक्रमित स्वास्थ्य कर्मियों के बीच संक्रमण संचरण कारक और उनके बारे में धारणा। 

डॉ देश दीपक, डॉ पूजा सेठी, डॉ माला छाबड़ा, डॉ नंदिनी दुग्गल 

SARS CoV2 के कारण होने वाली कोरोनावायरस महामारी ने दुनिया भर में कहर बरपाया, जिससे लाखों लोगों की जान चली गई । कोरोनोवायरस की पहचान मूल रूप से वुहान के हुबेई प्रांत, चीन में दिसंबर 2019 में निमोनिया के मामलों के बाद हुई थी । भारत में SARS Cov2 का पहला मामला 30 जनवरी, 2020 को केरल में एक छात्र में पाया गया था, जो सांस की तकलीफ के लक्षणों के साथ वुहान से आया था । भारत में कोविड बीमारी से पहली मौत 12 मार्च, 2020 को दर्ज की गई थी। कोविड-19 के साथ संक्रमण तेजी से बढ़ा, 28 मार्च, 2020 को 1000 मामलों तक पहुंच गया । 31 जनवरी, 2022 तक, भारत के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में फैले 4,97,975 मौतों के साथ कुल 4,14,69,499 मामले दर्ज किए गए थे। जैसा कि दुनिया भर में देखा गया है, कोरोनावायरस SARS-CoV-2 ने भारत में भी बड़ी संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों को संक्रमित किया है । हाल के अध्ययनों ने निष्कर्ष निकाला है कि स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता जो SARS-CoV-2 से सक्रमित थे, वे कुल कोविड -19 रोगियों का एक महत्वपूर्ण अनुपात था, लेकिन सामान्य जनसंख्या की तुलना में उनमें गंभीरता और मृत्यु दर कम थी। कोविड-19 रोगियों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने के कारण स्वास्थ्य कर्मियों (एचसीडब्ल्यू) को कोविड-19 से संक्रमित होने का खतरा बढ़ गया है और इसलिए इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। हालांकि अस्पतालों में संचरण से इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु वर्तमान में उपलब्ध जानकारी के अनुसार रोगियों या स्वास्थ्य कर्मियों में संक्रमण के स्रोत के रूप में अस्पताल की भूमिका का समर्थन नहीं किया जा सकता है। इस विषय पर अस्पताल में किये गए एक अध्यन से हमें महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई! यह जानकारी आगे प्रस्तुत है।
 हमने पाया कि तैंतीस प्रतिशत स्वास्थ्य कर्मी जो कोविड से ग्रस्त हुए, उन्हें पहले से कोई अन्य बीमारी भी थी। सहरुग्णताओं के बीच, मधुमेह (Diabetes)अस्पताल में भर्ती होने की अधिक दर और बीमारी की गंभीरता से जुड़ा था। ऎसा कई पूर्ववर्ती अध्ययनों में भी पाया गया था क्योंकि मधुमेह में प्रतिरक्षा प्रणाली में कमज़ोरी आ जाती है। लिंग, आयु या कार्य की प्रकृति के संदर्भ में अध्ययन के दौरान एक या दो बार संक्रमित होने वाले प्रतिभागियों के बीच कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था। अधिकांश प्रतिभागी हल्की बीमारी से पीड़ित थे और पहले और दूसरे संक्रमण के दौरान मौजूद लक्षण बहुत समान थे। पिछले अध्ययनों ने निष्कर्ष निकाला है कि दैनिक शारीरिक गतिविधि करना गंभीर COVID-19 परिणामों के लिए जोखिम को कम करता है लेकिन हमारे अध्ययन में हमें शारीरिक गतिविधि और बीमारी की गंभीरता के बीच संबंध नहीं मिला। हालांकि, यह देखा गया कि अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि संक्रमण और पुन: संक्रमण की अधिक सम्भावना से जुड़ी थी। उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य कर्मियों की पोस्टिंग रोटेशन के आधार पर हुई, और पोस्टिंग खत्म होने के बाद कोरोना के लिए आरटी-पीसीआर परीक्षण किया गया। यह देखा गया कि कोविड ड्यूटी पर तैनात लोगों में दूसरे क्षेत्रों में तैनात लोगों की तुलना में पहले और दोबारा संक्रमण दोनों का जोखिम अधिक नहीं था। यह संभवत: इसलिए हुआ क्योंकि उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकांश स्वास्थ्य कर्मि संक्रमित होने के संभावित खतरे से परिचित थे और इसलिए संक्रमण नियंत्रण प्रथाओं का ज़्यादा अच्छे से पालन करते थे। 
पहले संक्रमण के दौरान अधिकांश स्वास्थ्य कर्मियों ने संक्रमण के स्रोत को अस्पताल में किसी रोगी या सहकर्मी के संपर्क के रूप में जिम्मेदार ठहराया, जबकि दूसरे एपिसोड के दौरान अधिकांश स्वास्थ्य कर्मियों ने संक्रमण के स्रोत के रूप में सामाजिक संपर्कों को जिम्मेदार ठहराया। इसे संभवतः समझा जा सकता है क्योंकि अधिकांश स्वास्थ्य कर्मि जो दो बार कोरोना से ग्रसित हुए , वे पहली बार, मार्च 2020 से सितंबर 2020 के बीच संक्रमित हुए थे। इस अवधि के दौरान देश में लंबी अवधि के लिए लॉकडाउन था और स्वास्थ्य कर्मि समाज के साथ संपर्क में नहीं आ रहे थे। दो बार संक्रमित होने वाले अधिकांश स्वास्थ्य कर्मि 15 फरवरी, 2021 से 15 अप्रैल, 2021 के दौरान दूसरी बार संक्रमित हुए । इस समयावधि के दौरान कोविड संबंधी प्रतिबंध कम थे और लॉकडाउन नहीं लगाया गया था, इसलिए स्वास्थ्य कर्मी समुदाय में घुल-मिल रहे थे । दोनों कोविड संक्रमणों में, अधिकांश प्रतिभागियों ने अपने परिवार के सदस्यों, सहकर्मियों या सामाजिक संपर्कों को संक्रमित नहीं करने की सूचना दी। यह इंगित करता है कि स्वास्थ्य कर्मी सतर्क थे और सामुदायिक प्रसार को रोकने के लिए कोविड प्रोटोकॉल का पालन कर रहे थे। गैर-टीकाकृत व्यक्तियों के संक्रमित होने और पुन: संक्रमित होने की संभावना अधिक थी। पिछले अध्ययनों ने भी यह संकेत दिया है कि SARS-CoV-2 संक्रमण के बाद टीकाकरण ने टी-सेल प्रतिरक्षा में वृद्धि की, और स्पाइक प्रोटीन के लिए एंटीबॉडी-स्रावित स्मृति बी-सेल प्रतिक्रिया, और टीकाकरण की पहली खुराक के बाद भी एंटीबॉडी मौजूद रहती हैं। अधिकांश स्वास्थ्य कर्मियों ने माना कि वे संक्रमित होने के उच्च जोखिम में हैं और इसलिए उनमें से अधिकांश संक्रमण की संभावना को कम करने के लिए रोगनिरोधी तैयारी कर रहे थे। जैसा कि हम जानते हैं कि कोई सिद्ध उपाय नहीं थे, इसीलिए विभिन्न तरीके अपनाए गए। हमारे अध्ययन में,एलोपैथिक और आयुर्वेदिक प्रतिरोधी दवाइयाँ लेने वाले प्रतिभागियों में अस्पताल में भर्ती होने की दर बहुत कम थी। इन दवाईओं की खुराक और अवधि अलग-अलग थी। अधिकांश ने एक से अधिक रोगनिरोधी तरीका इस्तेमाल किया। इसलिए, यह निर्णायक रूप से नहीं कहा जा सकता है कि अस्पताल में भर्ती होने की दर किसी विशेष रोगनिरोधी तैयारी के कारण कम थी। यह इसलिए भी हो सकता है क्योंकि ये स्वास्थ्य कर्मी अधिक सतर्क थे, जिससे वे कोविड-उपयुक्त व्यवहार का अधिक अनुशाषन से पालन करते रहे। 
 उपसंहार 
यह देखा गया कि अधिकांश स्वास्थ्य कर्मी जो कोरोना की चपेट में आये उनको हल्की बीमारी थी, जिसके लक्षण पहले और दूसरे संक्रमण के दौरान सaमान थे। स्वास्थ्य कर्मियों के बीच, मधुमेह की उपस्थिति एक बढ़ी हुई गंभीरता और अस्पताल में भर्ती होने की सम्भावना के साथ जुड़ी हुई थी, जबकि संक्रमण के पहले या दूसरे प्रकरण के दौरान अन्य सह-रुग्णता का गंभीरता से सीधा संबंध नहीं पाया गया। अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि स्तर संक्रमण और पुन: संक्रमण के उच्च जोखिम से जुड़े थे लेकिन रोग की गंभीरता के साथ नहीं। रोगनिरोधी उपायों के रूप में एलोपैथिक और आयुर्वेदिक सूत्रीकरण का उपयोग अस्पताल में भर्ती होने की दर में कमी लाने में योगदान कर सकता है। हालांकि, एक निश्चित निष्कर्ष के लिए बड़े अध्ययन की आवश्यकता है। अधिकांश प्रतिभागियों ने महसूस किया कि उन्हें पहला संक्रमण एक कोविड पॉजिटिव रोगी से हुआ और दूसरा संक्रमण सामाजिक संपर्क से हुआ। दोनों संक्रमण ज्यादातर पूर्ण टीकाकरण से पहले देखे गए थे। टीकाकरण अस्पताल में भर्ती होने की कम दर से भी जुड़ा है।
 (मूल शोध को अंग्रेजी स्वरुप https://jiacm.in/jan_mar_2023/Journal_82_6_11.pdf पर उपलब्ध है)

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