Monday, August 11, 2014

vaicharik anemia


देश में एनीमिया व्यापक है, ये मैं मानता था,
पर खून की इतनी कमी है , मैं ये न जानता था!

एक बालिका से उसका बचपन चुरा के,
रजस्वला होते ही ब्याह दिया गया,
जीवन सरिता में एक अनजाने देव को
अर्पण कर प्रवाह दिया गया।
उस कोमल कोपल से फिर कहा
तुम हमें एक वृक्ष बीज दो,
तुम सुता नहीं, सुर-सरिता हो,
हमारे कुटुंब को सींच दो,
स्वयं का नारी होना चरितार्थ करो,
हम कृतघ्नों को कृतार्थ करो।
प्रचुर नारी नहीं, गृहलक्ष्मी नहीं,
उस अनभिज्ञ बालक ने गर्भ धारण किया,
हे प्रभु! ऐसा उत्पीड़न तूने किस कारण किया!

जिस रक्त की पहले ही बहुत कमी थी,
गर्भस्थ शिशु की आँखें भी उसी पर जमीं थीं!
अचानक सबको ये आभास हुआ,
अन्याय ये कैसा अनायास हुआ।
जब मन पर पड़ा बोझ,
तो आरम्भ हुई रक्त की खोज!

…………………………………।
रक्त की खोज 
सास ने कहा अपने लाल को,
रोना आता है मुझे देखकर तेरे हाल को,
माना तू इसका पति है, पर तू इस बालक का भी पिता है,
तू रक्तदान कदापि नहीं करेगा,
कमज़ोर पिता की कमज़ोर संतान होती है,
ऐसा शास्त्रों  में लिखा है
हमारी उम्र न हुई होती
तो मैं और तेरे बाबूजी
रक्तदान क्या जीवनदान करते
अपने रक्त से तेरे वंश में प्राण भरते
बहन बोली मैं तो खुद लाचार हूँ,
अपने चार प्रसवों के बाद, जीवन प्रयन्त बीमार हूँ।
पडोसी लेटा हुआ था अपने बिस्तर में औंधा,
रक्तदान के नाम से उसके दिमाग में एक सुझाव कौंधा,
मुझसे तो अपने वज़न के कारण हिला भी नहीं जाता,
वरना क्या मैं तुम्हारे साथ रक्तकोष तक न जाता।
अरे भैय्या अपनी किस्मत आज़माओ,
सुबह सवेरे पार्क चले जाओ।
कहते हैं सभी स्वस्थ लोग वहीँ होते हैं,
और दूसरों का भला करने को आतुर होते हैं।

पार्क में दो महिलाएं गहनों  पर गहन चर्चा करती हुई मिलीं
रक्तदान का नाम सुनते ही बेंच से उछली
हम इन चक्करों में नहीं पढ़ते,
न जाने लोग कैसी कैसी कहानियां हैं गढ़ते!
हमने तो अपना नुक्सान नहीं किया
जीवन में कभी रक्तदान नहीं किया!
सुना है रक्त से नई -नई बिमारीयाँ होती हैं,
अरे हम गृहणियाँ  क्या रक्तदान के लिए होती हैं?

जॉगिंग करते हुए भाईसाहब ने ज्ञान दिया,
आपने ब्लड बैंक से क्यों नहीं लिया,
अच्छी क्वालिटी जैसे ऐ प्लस ले लेना,
आजकल मार्किट में क्या नहीं मिलता,
बस थोड़े पैसे दे देना।

ताली योग करते हुए सज्जन ने पहले ताली पीटी
फिर कहा मुझे तो है डायबिटीज
और फिर से ताली बजाई
मानों रक्तदान की खिल्ली उड़ाई

गंजे महानुभाव ने चिढ कर किया बखान
कमी तो सभी में है,
क्या कोई हमें करेगा केशदान।

कपाल भाँती करते हुए अकाउंटेंट ने कहा
चार सौ सी सी का कॉन्ट्रिब्यूशन!
हम तो पहले ही कर चुके है,
एट्टी सी सी में डोनेशन।

एक युवा एग्जीक्यूटिव ने हाथ पे लगी बैंडऐड दिखाई
मैंने तो कल ही खून दिया है,
अभी तो रिपोर्ट भी नहीं आई।
 
हताश हो मित्र से कहा, "मित्र खून नहीं मिला",
"अरे उसका तो अभी आविष्कार ही नहीं हुआ
तुमने अखबार में नहीं पढ़ा"।

एक-एक कर अनेकोअनेक लोग आये,
कुछ दौड़ते, कुछ चलते, और कुछ थे कुत्तों को साथ लाये,
स्वयं का स्वास्थ्य  लाभ सभी का प्रयोजन था,
पर न कोई भी कर सका रक्त का संयोजन था!
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किन्तु खोज से मिलता वो है जो हो चाहे वो गुप्त है,
आजकल नसों में तो स्वार्थ दौड़ता है, रक्त तो हो चुका लुप्त है।
शारीरिक एनीमिया का फिर भी उपचार है,
दृष्टिकोण की रक्ताल्पता से समाज लाचार है,
अफ़सोस! रक्त किसी कारखाने में नहीं बनता,
और शुक्र है की इसका शिल्पगृह हम सभी के पास है,
हम रक्त का स्रोत हैं या हमको वैचारिक एनीमिया है,
ये तो अपना अपना आभास है!

Thursday, August 7, 2014

Dhyey mere jeevan ka, aur meri mrityu ka...

कहने को केवल इक दिशा है,
किन्तु निर्भर इसीपर  मेरी सम्पूर्ण मनोदशा है!
प्रतिदिन, आँखें जमाये शत्रु पर
अविरल खड़ा मैं सीमा पर
जब पूछते हैं नेत्र मेरे की कैसे है रिपु पहचाना जाता,
सटीक उत्तर है मेरा, 'दिशा' जहाँ से वो आता!
मैंने भी उसको देखा नहीं है,
किन्तु जानता  हूँ की ये दिशा सही नहीं है!

यूं तो मैंने उनको भी नहीं देखा,
जिनके वास्ते मैं युद्ध करता हूँ,
अनजाने हैं वो, जिनके लिए मैं
सरहद पर मरता हूँ,
मेरे पीठ-पीछे से आती है जो दिशा
उसी को पीठ दिखा सकता हूँ कैसे भला!

अज्ञात है मेरा शत्रु,
अपरिचित ही हैं, मेरे अपने भी,
किन्तु मैं भी अनभिज्ञ  हूँ,
उस भय से जो शत्रु मेरी आँखों में है खोजता
निष्चय दृढ़ है,
वक्ष पर गोली खाने को
न एक पल भी हूँ मैं सोचता

चाहे वो मेरे मित्र न सही,
निश्चित ही वो मेरे स्वजन हैं,
न्यौछावर उन पर करू,
इसी हेतु हुआ मेरे जीवन का सृजन है,
किसी व्यक्ति से नहीं,
फिर भी ये युद्ध मेरा व्यक्तिगत है,
क्यूंकि न केवल उनका जीवन,
अपितु उनकी हंसी भी
मेरी धरोहर है,
रक्षा करूँ  अपने राष्ट्र-कुटुंब की
मेरे जीवन का ही नहीं,
मेरी मृत्यु का भी और कोई
ध्येय नहीं!
इससे अधिक प्राप्त हो,
ऐसा कोई श्रेय नहीं!

The course of the course!

The course of the course!  Our motivation to join the course was as per the Vroom's Expectancy theory, as we expected that with a certai...