Thursday, August 7, 2014

Dhyey mere jeevan ka, aur meri mrityu ka...

कहने को केवल इक दिशा है,
किन्तु निर्भर इसीपर  मेरी सम्पूर्ण मनोदशा है!
प्रतिदिन, आँखें जमाये शत्रु पर
अविरल खड़ा मैं सीमा पर
जब पूछते हैं नेत्र मेरे की कैसे है रिपु पहचाना जाता,
सटीक उत्तर है मेरा, 'दिशा' जहाँ से वो आता!
मैंने भी उसको देखा नहीं है,
किन्तु जानता  हूँ की ये दिशा सही नहीं है!

यूं तो मैंने उनको भी नहीं देखा,
जिनके वास्ते मैं युद्ध करता हूँ,
अनजाने हैं वो, जिनके लिए मैं
सरहद पर मरता हूँ,
मेरे पीठ-पीछे से आती है जो दिशा
उसी को पीठ दिखा सकता हूँ कैसे भला!

अज्ञात है मेरा शत्रु,
अपरिचित ही हैं, मेरे अपने भी,
किन्तु मैं भी अनभिज्ञ  हूँ,
उस भय से जो शत्रु मेरी आँखों में है खोजता
निष्चय दृढ़ है,
वक्ष पर गोली खाने को
न एक पल भी हूँ मैं सोचता

चाहे वो मेरे मित्र न सही,
निश्चित ही वो मेरे स्वजन हैं,
न्यौछावर उन पर करू,
इसी हेतु हुआ मेरे जीवन का सृजन है,
किसी व्यक्ति से नहीं,
फिर भी ये युद्ध मेरा व्यक्तिगत है,
क्यूंकि न केवल उनका जीवन,
अपितु उनकी हंसी भी
मेरी धरोहर है,
रक्षा करूँ  अपने राष्ट्र-कुटुंब की
मेरे जीवन का ही नहीं,
मेरी मृत्यु का भी और कोई
ध्येय नहीं!
इससे अधिक प्राप्त हो,
ऐसा कोई श्रेय नहीं!

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