अशाब्दिक सम्बन्ध
ये नहीं कि मैं अनभिज्ञ था,
भावनायों से तुम्हारी,
किन्तु असंतोष मेरा अधिज्य था,
अकर्मण्यता पर तुम्हारी,
केवल इच्छायें पर्याप्त नहीं होतीं,
मात्र आकांक्षायों से विजय प्राप्त नहीं होती,
उसी प्रकार संबंधों में भी शब्द-प्राण अनिवार्य हैं,
बिना प्रत्यंचा के धनुष में टंकार नहीं होती,
जानता हूँ कि तुम्हारी भावशून्यता में
भावों का अभाव नहीं
किन्तु बिना शब्दों के
भावों का कोई प्रभाव नहीं
धारणा ऐसी थी मेरी
किन्तु अनायास ही मति मेरी फिरी
अपनी ही एक बात जब कंठ से तुम्हारे सुनी
उस अभिज्ञान से आस्था हो गयी दोगुनी
कितना सुभग ये सम्बन्ध है
व्याख्या की आवश्यकता हो
नहीं ऐसा अनुबंध है
प्रीत को रीत बाध्य नहीं
मूक प्राणियों में भी स्नेह असाध्य नहीं!
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