Wednesday, November 25, 2015

शुक्रिया ऐ दोस्त!

शुक्रिया ऐ दोस्त!


आज मेरी महफ़िल में तुम भी थे
फिर उमड़ आये वो दिन बीते!

आज जब मैं ग़ज़ल पड़ रहा था
तो तुम्हारे माथे की शिकन में
तुम्हारी भावनाएं भी पड़ रहा था!

तुम उनके साथ आये
जैसे एक जिस्म दो साये,
तुमने उन्हें देख मुझे देखा
और फिर उन्हें देखा
मानो मेरा तआरुफ़ उनसे करवाया!
और फिर तुम्हारी हलकी सी हँसी
मानो पूछ रही थी
"हैँ न तुमसे हसीं ?"
फिर खो गयी तुम्हारी मुस्कान कहीं,
पूछती "क्या थी मुझमें कमी?"

तुम्हें मेरे शेर पसंद थे
पर मुझे भी अपने शेर ही अज़ीज़ थे
क्या मुशायरों में मिली दाद
से तुम्हारा पेट भरता?
क्या रोज़ वही सफ़ेद कुर्ता -पायजामा
तुम्हारी ज़िन्दगी को बेरंग न करता?
न सोचते क्या सिला मिला मेरी यारी का?
इंतज़ार कभी महफ़िलों के ख़त्म होने का
कभी उनकी तैयारी का!
क्या तुम रोज़ मेरा इंतज़ार कर
ऊब न जाते?
क्या तुम मायूसी के समन्दर
में डूब न जाते?





वो लोगों से मिलना
तोहफे देना, उपहार पाना
वो गाड़ियों में घूमना
वो सपनों को चूमना
वो गहनों की चमक
तुम्हारे बदन पर
उनकी सितारों सी झलक
वो तुम्हारा श्रृंगार करना
गर कोई उसे निहारने को न होता ?
क्या तुम सिर्फ मेरे अशआरों से मिले
उस क्षणिक आनंद
को ज़िन्दगी भर चबा पाते
या ग़म का सागर बन
मेरे फ़न को उसमें डुबोते?

आज तुम इतरा रहे थे
मुझे तालियाँ मिलने पर
उनकी बाँहों में समा रहे थे
पर मैं भी मन ही मन
मुस्कुरा रहा था
चाहे कोई कोशिश कर
मुझे चिढ़ा रहा था
पर एक बात और है
बताने को तुम्हें,
तुम जिसे मेरा रकीब
समझ रहे हो
उसका मुझ पर क़र्ज़ है
जो निभाना था मुझे
निभाया उसने वो फ़र्ज़ है,
दिए उसने तुम्हें वो लुत्फ़ सारे
जिनके लिए थे तुम मेरे आसरे
और मेरी वो आख़री ग़ज़ल
"खुद ने हम दोनों को
तुम्हें बख़्शा है..... "
उन्हीं की नज़र थी,
जिस तरह तुम्हें फक्र है
उनका होकर
मुझे भी नाज़ है उनके होने पर
ज्यों तुम्हारी हँसी का ज़िम्मा है उन पर
मेरा सुख भी उनका शुक्रगुज़ार है !




No comments:

Post a Comment

आघात या घात का तात्पर्य

 घात - 'घात' शब्द अनेकों रूप में प्रयोग किया जाता है! इसका एक सामान्य अर्थ होता है 'छुप कर वार करना'। घात शब्द का गणित में प...