Monday, September 25, 2017

पोटली सौहार्द की!

पोटली सौहार्द की!

'प' से पवित्र होता है और 'प' से पाक भी
पर षट्कोण के 'ष' सा उसका पेट काट दिया
जब देश में लकीर खींची
तो भाषा को भी बाँट दिया,
हिंदुस्तानी जो ज़बान थी
उसे उर्दू और हिंदी में छांट दिया,
पर हिंदुस्तानी जो दिल है
उसे कहाँ कब बाँट पाया ये समाज,
तभी तो गणपति के संरक्षण में आज भी
होती है अदा जुम्मे की नमाज़।






नहीं सीमित चौपाई और दोहों तक
अब उर्दू  में भी होता है इनका गुणगान,
जिन्हें  सुरसा न कर पायी,
भाषा से कैसे संकुचित होते वे हनुमान।






समझते हैं लोग एक दूसरे के नमस्ते और सलाम को,
कोई कितना भी बरगलाये,
पहचानते है एक दुसरे के रहीम और राम को,
और पहुँचने को सब तक
मारवाड़ी में भी लिख दिया है
पैगम्बर के पैग़ाम को।



रख ली है दाढ़ी और पांच बार नमाज़ पढ़े
मीरा के भजन गाये, नाचे धर के सिर पे घड़े,
अब्दुल रियाजुद्दीन कहो या कीर्तनकर राजूबा,
धर्मों से भी ऊपर है ये वारकरी अजूबा,






पर्दानशीं देखें शिव को चाव से
और गोदी में खिलाएं गोकुल का लल्ला ,
कोई हो मुअज़्ज़िन की गली,
और कहीं हो साधु का मोहल्ला,
पर कैसे अलग रख पाओगे
जिस देश को जोड़े गेंद और बल्ला !




जब भी मैंने इस देश की नब्ज़ टटोली है,
तो पाया कि  ये जैसे एक पोटली है,
माना की इसे झँकझोड़ो तो ये बजती है,
इसमें बसे पत्थऱ टकराते हैं
चिंगारी सी निकलती है
आवाज़ आती है
एक भयंकर नाद की,
पर फटती नहीं, खुलकर बिखरती नहीं
क्योंकि ये देश
है एक पोटली सौहार्द की !

1 comment:

  1. Are wah, in the atmosphere of hatred this comes as a pleasant one.lovely

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