माँ भी इंसान होती है,
हमेशा सही कहना और करना है,
क्योंकि वो तो सच का दृष्टान्त होती है,
इसके बोझ तले वो जीती है
उसे कहाँ स्वछंदता मनमानी की,
वो तो उत्कृष्टता की प्रतिमान होती है,
उसको तो सहनशील होना है,
श्रेयहीन अविराम उद्यम करना है,
वही तो धरती पर
दैव गुणों की प्राण होती है,
सच ही तो है,
कि माँ भगवान होती है
कितना सरल हो जाये
उसका जीवन
यदि बस इतना याद रहे
कि माँ भी इंसान होती है.
हमेशा सही कहना और करना है,
क्योंकि वो तो सच का दृष्टान्त होती है,
इसके बोझ तले वो जीती है
उसे कहाँ स्वछंदता मनमानी की,
वो तो उत्कृष्टता की प्रतिमान होती है,
उसको तो सहनशील होना है,
श्रेयहीन अविराम उद्यम करना है,
वही तो धरती पर
दैव गुणों की प्राण होती है,
सच ही तो है,
कि माँ भगवान होती है
कितना सरल हो जाये
उसका जीवन
यदि बस इतना याद रहे
कि माँ भी इंसान होती है.
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