सच है,
देश में अपने खून की बहुत कमी है!
ज्वारभाटा जो दौड़ता था गायब है,
अब तो रगों में सिर्फ एक नमीं है।
उसूल, नैतिकता, पौरुष कुछ नहीं,
सिर्फ मनमानी,
जिसको सहेजना था उसी को रौंद डाला
अब खून खून नहीं, हो गया है पानी,
कैसे इतनी हैवानगी ये सह गया,
खौला नहीं जो खून,
लगता है आज़ादी में ही सारा बह गया .
इस कमी को नहीं कर सकता पूरा कोई रक्तदान
ना ही एक दिन अचानक मिलेगा कोई वरदान,
ना इसका उपचार होगा रटने से चौपाई और दोहा
हमें तो लेना होगा अपनी ही संकीर्ण मानसिकता से लोहा
और शायद समाज के पुनरूज्जीवन के लिए
एक-एक रक्त कोशिका को बड़े यत्न से बनाना होगा
लगता है एक बार फिर
जनतंत्र में से स्वराज खोजने के लिए
कई लौहपुरुषों को लहू बहाना होगा
ये कैसी रक्ताल्पता है, जो खून बहाने से पूरी होगी
यदि बनाना है लोहा समाज में तो
अब हमारी सोच में एक लौह-क्रांति ज़रूरी होगी
देश में अपने खून की बहुत कमी है!
ज्वारभाटा जो दौड़ता था गायब है,
अब तो रगों में सिर्फ एक नमीं है।
उसूल, नैतिकता, पौरुष कुछ नहीं,
सिर्फ मनमानी,
जिसको सहेजना था उसी को रौंद डाला
अब खून खून नहीं, हो गया है पानी,
कैसे इतनी हैवानगी ये सह गया,
खौला नहीं जो खून,
लगता है आज़ादी में ही सारा बह गया .
इस कमी को नहीं कर सकता पूरा कोई रक्तदान
ना ही एक दिन अचानक मिलेगा कोई वरदान,
ना इसका उपचार होगा रटने से चौपाई और दोहा
हमें तो लेना होगा अपनी ही संकीर्ण मानसिकता से लोहा
और शायद समाज के पुनरूज्जीवन के लिए
एक-एक रक्त कोशिका को बड़े यत्न से बनाना होगा
लगता है एक बार फिर
जनतंत्र में से स्वराज खोजने के लिए
कई लौहपुरुषों को लहू बहाना होगा
ये कैसी रक्ताल्पता है, जो खून बहाने से पूरी होगी
यदि बनाना है लोहा समाज में तो
अब हमारी सोच में एक लौह-क्रांति ज़रूरी होगी
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