Monday, November 24, 2014

बचपन

बचपन 


कितना सरल होता बचपन
फिर भी कितनी अजीब होतीं कुछ बातें
दिन केवल खेलने को
और सिर्फ सोने को होती रातें,
सड़क के शोर से दूर हो घर,
पर दरवाज़े पर हो बस स्टॉप, ऐसा हम चाहते,
जो मन किया वो बोलते
जो नज़र आया वो खाते
जिस चीज़ का मन किया
बस मांगना होता, और हम उसे पाते
चुप्पी का मतलब उदासी होता
वर्ना यूं तो हम खूब शोर मचाते
हमें तो मन-मानी करनी होती
चाहे माँ-बाप जितना भी समझाते
रात को जितना भी झगड़ा किया हो
सुबह उठ हम सब भूल जाते
कितनी गज़ब की आस्था है, हमारी प्रार्थना में
भला भगवान से माँगा हुआ न मिले
ऐसा हम सोच भी न पाते
बचपन का जादू कहीं खो न जाए
अगर हो सकता तो हम सदा बच्चे ही रह जाते !

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