Friday, March 3, 2017

आज का नारायण!

जा चुका अब समय तर्क-वितर्क का,
न होगा हल अब वाद-विवाद से,
अब तो फिर से एक बार करना होगा समुन्द्र-मंथन
गर निकलना है इस सामाजिक अवसाद से!

फिर असुरों के हाथ में सत्ता है,
और साध-जनों से तो न हिलता पत्ता है,
अच्छाई की सारी ताकत का क्षय हो चुका है
और अपदूतों के मन से हर भय खो चुका है!

मंथन कर सामर्थ्य का अमृत निकालना होगा,
और खुद ही मोहिनी बन असुरों को टालना होगा,
आतताइयों का कदाचित अधिक बल होगा
इसीलिए करना अच्छाई को अब छल होगा !

अब तुम्हें ही मंदराचल बनना है, और तुम्हें ही वासुकि
तुम्हें ही कच्छप लेना है अवतार और तुम्हें ही मोहिनी,
न आ जाये कोई स्वरभानु,  भानु को खा जाने को
तुम्हें ही रोकना होगा उसका देवों  में आ जाने को,
तुम्हें ही पहचानना होगा कि किसे करना है सशक्त
और किसका करना है नाश
नहीं तो सदा झेलना होगा ग्रहण का पाश!
अब तुम्हें ही शंकर बन प्रलय लानी होगी
और तुम्हें ही मीन बन सृष्टि बचानी होगी,
ये प्रलय आसमान से नहीं आएगी
तुम्हारे वराह प्रयत्नों से ही
ये डूबती धरती बच पायेगी
हिरण्याक्षों का अंत करना होगा
और ये काम तुरंत करना होगा
वर्ना ये स्थिति सदा बनी रहेगी,
अब तुम्हें ही ये काम अनंत करना होगा!!

स्वयं ही नारायण बनो
और लो सभी अवतार
नहीं और कोई कल्कि आएगा
तुम्हें ही करना है
जग का उद्धार!!



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