Sunday, November 29, 2020

साँस में संत्रास

न हवा, न घटा,
तिमिराच्छन्न सकल आकाश,
हर साँस में संत्रास,
प्रचुर प्रकृति अक्षम देने में स्वांस
आसन्न प्रलय का आभास !

धुंधलका एक ठहरा हुआ,
भय और गहरा हुआ!

क्यों शोर है इतना
है किस बात का उल्लास

मत छोड़ो पदचिह्नों में प्रांगार
हो अंकित धरा पर पदचिन्ह बारम्बार,
भूगर्भ का ईंधन न हो प्रदाह,
चर्म प्रच्छन्न चर्बी करो स्वाह !
अल्पव्ययी हो, प्रकृति की ऊर्जा मत व्यय करो,
केवल स्वयं में समाहित 

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