Sunday, April 2, 2023

Cleanliness - a concept

डॉ देश दीपक 
Cleanliness is a broad concept. We have started realizing its importance more and more in recent times. Hitherto, it was said that we have larger, more immediate and more tangible problems to deal with that are more important than philosophical concepts like cleanliness or other such virtues. However, as a society we have begun to understand that if we directly address issues like cleanliness, it may become easier to deal with our larger problems. If we fall back upon our scriptures, we observe that there may not be regular discussion about cleanliness but it is considered to be a daily routine. Probably, the concept of cleanliness was so well understood that there was no need to debate it. Somehow, we need to reason even the most basic tenets today.
The English word hygiene means "practices conducive to maintaining health and preventing diseases through cleanliness". The word has its origin from the Greek Godess of health and cleanliness, Hygieia, the word literally means "healthful". Personal hygiene refers to practices to keep our body clean in order to maintain health. It includes inculcating such practices that would keep us clean and healthy as habits, like bathing, washing hands, changing clothes, trimming nails. It now, goes on to include covering our coughs and sneezes, keeping our food and surroundings including homes and toilets clean.
Cleanliness in medical practice, may look something obviously basic and essential today but there was a time when the skill of a surgeon was gauged from the number of stains on his surgical gown, as there was a practice to use same gowns repeatedly without the need for cleaning. Cleanliness and hygiene in medical practice today can be attributed to four people in history; Ignaz Semmelweis, Louis Pasteur, Florence Nightingale and Joseph Lister. Semmelweis was a hungarian physician who proposed practice of washing hands with chlorinated lime water to reduce incidence of postpartum fever. Although his pioneering work demonstrated that the mortality could be reduced to less than 1% by washing hands but he could not offer an explanation for the same. He died in 1865 of a gangrenous wound. In subsequent years Louis Pasteur proved the germ theory and then it could be understood that diseases were caused by microbes. Lister brought the concept to surgical practice by using carbolic acid to sterilize surgical instruments and wounds  and proved that suppuration of wounds could be prevented by antiseptic measures. Florence Nightingale brought the concept of hand-washing and hygiene in the nursing care and proved that mortality could be drastically reduced by proper sanitation measures while caring for wounded soldiers.
Medical hand-washing is for a minimum of 15 seconds, using generous amounts of soap and water or gel to lather and rub each part of the hands. Hands should be rubbed together with digits interlocking. If there are debris under fingernails, a bristle brush may be used to remove it. Since germs may remain in the water on the hands, it is important to rinse well and wipe dry with a clean towel. After drying, the paper towel should be used to turn off the water (and open any exit door if necessary). This avoids re-contaminating the hands from those surfaces.
The World Health Organization has "Five Moments" for washing hands:
  • before patient care
  • after environmental contact
  • after exposure to blood/body fluids
  • before an aseptic task, and
  • after patient care.
Concept of hygiene is an integral part of infection control, whether it be at our houses, workplace or hospitals. We have realized its importance more and more during Covid times. We need to make hygiene a way of life to be a developed nation.

स्वच्छता एक व्यापक अवधारणा है। हमने हाल के दिनों में इसके महत्व को अधिक से अधिक महसूस करना शुरू कर दिया है। अभी तक यह कहा जाता था कि हमारे पास निपटने के लिए इससे बड़ी,  तात्कालिक और अधिक ठोस समस्याएं हैं, जो दार्शनिक अवधारणाओं जैसे कि स्वच्छता या अन्य ऐसे गुणों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि, एक समाज के रूप में हम यह समझने लगे हैं कि यदि हम स्वच्छता जैसे मुद्दों को सीधे संबोधित करते हैं, तो हमारी बड़ी समस्याओं से निपटना आसान हो सकता है। यदि हम अपने शास्त्रों को देखें, तो हमें पता चलता है कि स्वच्छता के बारे में नियमित चर्चा नहीं  है, क्योंकि  इसे दिनचर्या का अभिन्न भाग माना जाता था। शायद, स्वच्छता की अवधारणा इतनी अच्छी तरह से समझ में आ गई थी कि इस पर बहस करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। आज की तर्क संगत दुनिया में  हमें सबसे बुनियादी सिद्धांतों का भी कारण जानने की आवश्यकता होती है।

स्वच्छता का आयुर्विज्ञान में इतिहास 

अंग्रेजी शब्द 'हाइजीन' का अर्थ है "स्वास्थ्य को बनाए रखने और स्वच्छता के माध्यम से बीमारियों को रोकने के लिए अनुकूल व्यवहार"। यह शब्द स्वास्थ्य और स्वच्छता की ग्रीक देवी 'हाइजिया' के नाम से प्रेरित है। इसका शाब्दिक अर्थ "स्वास्थ्यपूर्ण" है। 'व्यक्तिगत स्वच्छता' या 'पर्सनल हाइजीन' स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए शरीर को साफ रखने की प्रक्रियाओं को संदर्भित करता है। इसमें ऐसी गतिविधियाँ शामिल है जो हमें स्नान, हाथ धोने, कपड़े बदलने, नाखूनों को काटने जैसी आदतों के रूप में स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखेंगी। अब इसमें और भी कुछ बातें , जैसे खांसते और छींकते समय मुहँ और नाक को ढकना, हमारे भोजन और आसपास के घरों और शौचालयों को साफ रखना भी शामिल किया जाता है।
चिकित्सा पद्धति में स्वच्छता आज स्पष्ट रूप से बुनियादी और आवश्यक दिखाई देती हैलेकिन यह जान कर आश्चर्य होता है कि एक समय था जब एक सर्जन के कौशल का अनुमान उसके सर्जिकल गाउन पर लगे दागों की संख्या से लगाया जाता था। चिकित्सा पद्धति में स्वच्छता के इतिहास में चार लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है! इग्नाज सेमेल्विस, लुई पाश्चर, फ्लोरेंस नाइटिंगेल और जोसेफ लिस्टर। सेमेल्विस हंगरी के एक चिकित्सक थे  जिन्होंने प्रसवोत्तर बुखार की घटनाओं को कम करने के लिए क्लोरीनयुक्त नींबू पानी के साथ हाथ धोने के अभ्यास का प्रस्ताव रखा।  यद्यपि उनके  कार्य ने   यह प्रदर्शित किया  कि हाथ धोने से मृत्यु दर 1% से भी कम हो सकती है लेकिन वह उसका कारण स्पष्ट नहीं कर पाये। वह 1865 में एक घाव संक्रमण से मारे गए।  बाद के वर्षों में लुई पाश्चर ने रोगाणु सिद्धांत को साबित कर दिया और फिर यह समझा जा सका कि जीवाणु ही संक्रामक रोग के कारण होते हैं।  लिस्टर ने सर्जिकल उपकरणों और घावों को निष्फल करने के लिए कार्बोलिक एसिड के  उपयोग की प्रथा शुरु की  और साबित किया कि एंटीसेप्टिक उपायों से घावों को रोका जा सकता है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने नर्सिंग देखभाल में हाथ धोने और स्वच्छता के महत्त्व को स्थापित किया  और यह साबित किया कि घायल सैनिकों की देखभाल करते समय उचित स्वच्छता उपायों से मृत्यु दर में भारी कमी आ सकती है। 

हैंड हाईजीन (हस्त प्रक्षालन या हाथ धोने ) की विधि 
 न्यूनतम 15-२०  सेकंड के लिए हाथ धोना ज़रूरी है, साबुन और पानी या जैल  की उदार मात्रा का उपयोग करें और हाथों के प्रत्येक भाग को रगड़ें। हाथों को डिजिटल इंटरलॉकिंग के साथ रगड़ना चाहिए। यदि नाखूनों के नीचे गन्दगी  हैं, तो इसे हटाने के लिए एक ब्रिसल या ब्रश का उपयोग किया जा सकता है। चूंकि कीटाणु हाथों पर पानी में रह सकते हैं, इसलिए अच्छी तरह से हाथ धोना  और एक साफ तौलिया के साथ पोंछ कर सुखाना महत्वपूर्ण है। सूखने के बाद, नल को बंद करने के लिए कागज का तौलिया उपयोग किया जाना चाहिए । यह उन सतहों से हाथों को फिर से दूषित करने से बचाता है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाथ धोने के लिए "पाँच क्षण" चिह्नित किये हैं:
१. रोगी की देखभाल से पहले
२. रोगी के पर्यावरण संपर्क के बाद
३. रक्त / शरीर के तरल पदार्थ के संपर्क में आने के बाद
४. किसी चितिक्सकीय  प्रक्रिया से पहले, और
५. रोगी की देखभाल के बाद 
स्वच्छता की अवधारणा संक्रमण नियंत्रण का एक अभिन्न अंग है, चाहे वह हमारे घरों, कार्यस्थल या अस्पतालों में हो। हमने कोविड के समय में इसके महत्व को अधिक से अधिक महसूस किया है। हमें एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए स्वच्छता को जीवन शैली का अंग बनाने की आवश्यकता है। एक 

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