सर्द तन्हाई
परवान पे सही ना जाती, इसीलिए छिपी रही होगी!
रिश्ते सब सर्द हो चले, इंसान यहाँ कोई नहीं
सोचता हूँ कहाँ ढूँढूँ, जहाँ गर्माइश वही होगी!
ये सर्दी कोई मौसम नहीं जो गुज़र जायेगा
अब महीने बदलें, साल बदलें, बयार वही होगी!
पानी उबाल लेता हूँ कि कुछ तो गर्म महसूस हो
एहसास वो न सही, उम्मीद वही होगी!
इतना तनहा हूँ कि सांसों की जुम्बिश का भी इल्म नहीं
पर सोचता हूँ तो जिस्म में जान रही होगी!!
No comments:
Post a Comment