Tuesday, November 16, 2021

नर में नारायण

हर पल, हर क्षण चरित्र बदलते हैं 
कभी कितने सबल, कितने सक्षम 
मानो हर वरदान मुट्ठी में लिए चलते हैं, 
समेटे कलायें सारी, वो विराट रूप
वो नरसिंह अवतार से दीखते हैं!
कभी कितने निरुपयोगी, कितने क्रिया-हीन हैं 
मानो शेषशैय्या पर चिर निंद्रा में विलीन हैं! 
कभी तुलसीवन में एकाकी, श्रापित सालिग्राम से जड़, दोषी नज़र आते हैं 
और कभी उसी वृन्दावन में 
रात को अनेक प्रतियाँ बना किवदंत रास रचाते हैं, 
वो नृत्य जो हरी-श्रृंगार के फूल से हैं,
रात को खिलते हैं, महकते हैं, 
पर उजाले में अंतर्ध्यान हो जाते हैं 
और कभी फलीभूत न होते!
केवल मनुष्य हो कर 
भला इतने रूप कैसे ले पाते हैं,
हम सभी तो नारायण हैं 
बस अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं !!

Wednesday, August 18, 2021

Happy Birthday to the perfect Dad!

एक मानव क्या दे सकता है 

बहुत कुछ!

केवल सोच से संकुचित है !


एक मानव क्या दे सकता है 

दुसरे मानव को 

और यदि दूसरा मानव 

उसका ही शिशु हो तो?

तो वो एक सोच दे सकता है 

वो सोच जो संकुचित न हो!


संस्कार दे सकता है 

संस्कार अच्छे जीवन मूल्यों के

संस्कार खुश रहने के 

संस्कार दूसरों की ख़ुशी में खुश रहने के!


सादगी दे सकता है 

सादगी विचारों की 

सादगी जिसमें क्षमा निहित है 

क्षमा-याचना किसी अपनी भूल पर 

और क्षमा-दान किसी और की  त्रुटि पर!


क्षमता दे सकता है 

क्षमता सही निर्णय लेने की 

क्षमता सुधार करने की 

सुधार परिस्थिति में, 

सुधार स्वयं में 

सुधार अन्यों में !


विनय दे सकता है 

विनम्रता दे सकता है 

सबल हो कर विनीत होना 

समर्थ हो कर विनम्र होना 

और विषम स्थितियों को स्वीकार करना 

ये सब दे सकता है!


वो जिसने सब दिया 

संस्कार, सादगी, क्षमता और विनम्रता 

और भी बहुत कुछ,

वो विलक्षण व्यक्ति 

जिसकी सोच में संकोच नहीं 

वो आप हैं !

आप को ऐसे जीवन, ऐसी जीवन शैली 

और ऐसे जीवन मूल्यों के लिए बधाई!

ईश्वर आपको दीर्घायु करे!!



Friday, June 18, 2021

गुंडागर्दी भगवान की!

 गुंडागर्दी भगवान की!

जबसे पैदा हुआ 
डरा के रखा!
अगर कुछ पाना है 
तो पूजा करो 
गर सलामती चाहते हो 
तो झुको, हाथ जोड़ो 
ख़ुशी चाहिए 
तो चढ़ावा चढ़ाओ 
फूल चढ़ाओ!

और जब मिल गया 
तो फिर शुक्राना दो 
नहीं तो छीन लिया जायेगा 
या दंड मिलेगा!

और ये सब करके भी नहीं मिला 
तो तुम्हारी शिद्दत में कमीं थी, 
तुमने पूरी आस्था से नहीं किया 
तुमने कर्म तो किया ही नहीं!

नहीं मिलने पर अगर सोचा 
कि ये सब तो व्यर्थ है 
तो परेशानी खड़ी कर दी जाएगी 
सब अस्त-व्यस्त कर दिया जायेगा 
अपने भविष्य के लिए 
भक्ति जारी रखो 
जो दिया है 
उसके लिए शुक्रगुज़ार रहो 
तुम ज़िंदा हो 
इसके लिए खुश रहो 
और सेवा करो!

सच्चे मन से मांगी दुआ भी पूरी न हुई,
तुम उसके काबिल ही न थे 
कर्मों का फ़ल है 
अपनी औकात से ज़्यादा माँगा!

अब तुम्हें अपनी जान की भी परवाह नहीं ?
जान तो एक दिन जानी है 
तो फिर क्यों करें ये इल्तजा 
तुम्हारी नस्ल के लिए 
तुम्हारी औलाद के लिए 
उनकी सलामती के लिए 
उनकी खुशहाली के लिए !


अपनी ज़िन्दगी के आग़ाज़ से अंजाम तक 
डर के रहो 
डर के जियो 
इबादत करो 
कोई कहीं बैठा तुम्हें आंक रहा है 
तुम्हारे मन के गोदाम में भी झाँक रहा है 
कोई ख्याल भी ज़हन में बिगड़ा 
तो वो अंक काट लेगा 
और तुम्हारे कितने अंक है 
इसका इल्म न होगा  
मौत तक 
और शायद कज़ा के बाद भी 
करो ये यकीन 
की  उसकी ही महर  से 
ग़म है , और होते हो शाद भी 
ता उम्र तौहीद परस्त  रहो 
नफ़ा -नुक्सान  अनदेखा करो 
बस यकीन करो 
उसकी  रूहानी ताक़त पर 
होने पर बर्बाद भी!



Friday, June 11, 2021

मैंने खुद चुना था

"With great power comes great responsibility!" - 'Uncle Ben: Spiderman'


मैंने खुद चुना था 

ये ही तो मेरी आकांक्षा थी 

वो श्रेय, वो सम्मान 

वो ही तो मेरा स्वप्न था !


मैंने खुद चुना 

मैं ढोना चाहता था ये भार 

था मैं तैयार 

ले जायूँगा इस पार 

से उस पार 

लोग मेरी नाव में चढ़ते गए 

और मैं उन्हें पार लगाता रहा 

लोग भी खुश थे 

मुझे भी चाव आता रहा !


फिर कुछ ऐसा हुआ 

जो सोचा न था 

कोई सवारी चढ़ी 

पर वो रस्ते में ही डूब गयी 

मेरी नाव भी डूबने लगी 

किसी तरह नाव बचाई 

किसी तरह जान बचाई 

उस लाश को भी पानी से निकाल लिया 

सोचा लाश तो किनारे लगा दूँ 

जब किनारे नाव लगी 

मैंने वो लाश उतार सम्बन्धियों को दी 

और वो उसे उठा चले गए 

पर फिर पाया की लाश तो मेरी नाव में ही थी,

फिर उतारा

लेकिन फिर नाव में ही पाया 

जितना भी उतारा, लाश नाव में ही रही

फिर मैं उसके साथ ही सफर करने लगा 

फिर लोगों को पार उतारने लगा 

मेरी नाव में 

कुछ लोगों को वो लाश नज़र आती 

कुछ को नहीं !

फिर यही हादसा दोबारा हुआ 

और फिर हुआ 

और फिर हुआ 

मैं भी नाव में लाशों को ढो चलता रहा 

नाव का वज़न बढ़ता गया 

मैंने खुद चुना था 

मैं ढोना चाहता था ये भार 

था मैं तैयार 

ले जायूँगा इस पार 

से उस पार 

इन लाशों को 

कुछ लाशें मेरे अपनों की थीं 

बैठे थे बड़े शौक़ से, 

डूब गए रस्ते में ही

जो बैठे थे बड़े यकीन से !


अब हम सफर करते हैं 

मैं और मेरी लाशें,

ये लाशें कभी 

उँगलियाँ नहीं उठातीं 

लगता है 

ज्यों मुझे देख हैं मुस्कुरातीं,

उँगलियाँ तो ये लहरें उठातीं हैं 

उँगलियाँ तो ये किनारे उठाते हैं 

ये हवायें उठातीं हैं 

ये किरणें उठाती हैं 

इसलिए अब मैं

सिर्फ अपनी लाशों से वास्ता रखता हूँ 

इनके ही साथ सफर करता हूँ !


हाँ, एक दिन 

मेरी नाव खाली होगी 

इसमें कोई लाश नहीं होगी 

या सिर्फ एक होगी !

जब ये अपने वज़न से डूब जाएगी 

तब ही ये अपने श्राप से उबर पायेगी 

मैंने खुद ही चुना था 

ये ही तो मेरी आकांक्षा थी 

वो श्रेय, वो सम्मान 

वो ही तो था मेरा वरदान 

श्राप बन जायेगा 

था मैं इससे अनजान!


अभ भी बहुतों को 

मेरी शापित नाव पर यकीन है 

मुझे भी है,

खे रहा हूँ ,

एक पतवार जो वरदान है 

दूसरी जो अभिशाप है 

चलती है नाव,

नाव के संग मैं, मेरी लाशें 

और वो लोग जो पार उतरना चाहते हैं,

और वो लहरें, वो किरणें 

वो हवायें, वो किनारे 

सब चलते हैं 

साथ 

क्योंकि मैंने खुद चुना था

मैंने खुद ही तो चुना था!


 

Tuesday, June 8, 2021

Homesick at home

I am feeling homesick today

at home!

Feeling is same as it was 

thirty five years ago  

in the hostel

away from my father!


My dad

had key to all the problems 

just being with him

and everything was easy!


First time I had this feeling

the day he dropped me to the hostel

and told me that he would return 

in few hours,

I knew he always kept his word

he would be back sooner than he said

but he didn't turn up

each minute of the wait 

was an inferno

and then my uncle turned up 

to fulfill my needs

I was devastated to see him

as I knew he always kept his word

Dad met an acccident

on his way back from the hostel

but all my worries were gone

when I talked to him on phone

all was well, nothing to fear!


Thirty five years later

I again had this feeling 

when he messaged me 

from the ICU

he said he was going and bade good bye

I broke down

as I knew he always kept his word

I called him back, I could

and told him that he was not going anywhere

he didn't contradict me

he always followed me as a physician

but then wrote a letter

and went far away

so far that I couldn't call him this time,

he always kept his word!


He believed in prayer, in piety

In his Pooja Room, in temples

he prayed to the deity

so that God took care of us,

he would ensure that the idols were 

never unattended!

Today, the deity lies unattended,

nobody to take care of the God,

Lifelong 

was God taking care of him 

or was he taking care of the God?


This home

which  I never left

where I always lived with him

this home

makes me homesick today

this home

without my Dad

doesn't feel like home

home, where is it??


This home

that he built

that he built for us

for us to live

and be without fear or worry

this home

is blessed

this home

this very home 

is where the home is

and he is there

within us

this home

is the temple

and we are both

the devotee and the deity

and he is there within us

both as the devotee that he was

and the deity that he is!


He is here

with me

just need to recognize

the divine light.

Friday, May 21, 2021

अमर बेल

ये बेल अभी सूखी नही है
ये बेल कभी नही सूखेगी,
क्योंकि इस बेल की शाखाएं हम
आपस मे जुङे है!
हम इसकी शाखाएं, इसके पत्ते, फल, बीज है,
हम मे इसका अंश प्राण है, 
हमसे बहुत सी नई बेले जन्म लेगी,
वो हर बेल इस बेल को जीवंत रखेगी!
हम सबकी अथक अटूट ऊर्जा से
ये बेल अमर रहेगी!

आघात या घात का तात्पर्य

 घात - 'घात' शब्द अनेकों रूप में प्रयोग किया जाता है! इसका एक सामान्य अर्थ होता है 'छुप कर वार करना'। घात शब्द का गणित में प...