गुंडागर्दी भगवान की!
"With great power comes great responsibility!" - 'Uncle Ben: Spiderman'
मैंने खुद चुना था
ये ही तो मेरी आकांक्षा थी
वो श्रेय, वो सम्मान
वो ही तो मेरा स्वप्न था !
मैंने खुद चुना
मैं ढोना चाहता था ये भार
था मैं तैयार
ले जायूँगा इस पार
से उस पार
लोग मेरी नाव में चढ़ते गए
और मैं उन्हें पार लगाता रहा
लोग भी खुश थे
मुझे भी चाव आता रहा !
फिर कुछ ऐसा हुआ
जो सोचा न था
कोई सवारी चढ़ी
पर वो रस्ते में ही डूब गयी
मेरी नाव भी डूबने लगी
किसी तरह नाव बचाई
किसी तरह जान बचाई
उस लाश को भी पानी से निकाल लिया
सोचा लाश तो किनारे लगा दूँ
जब किनारे नाव लगी
मैंने वो लाश उतार सम्बन्धियों को दी
और वो उसे उठा चले गए
पर फिर पाया की लाश तो मेरी नाव में ही थी,
फिर उतारा
लेकिन फिर नाव में ही पाया
जितना भी उतारा, लाश नाव में ही रही
फिर मैं उसके साथ ही सफर करने लगा
फिर लोगों को पार उतारने लगा
मेरी नाव में
कुछ लोगों को वो लाश नज़र आती
कुछ को नहीं !
फिर यही हादसा दोबारा हुआ
और फिर हुआ
और फिर हुआ
मैं भी नाव में लाशों को ढो चलता रहा
नाव का वज़न बढ़ता गया
मैंने खुद चुना था
मैं ढोना चाहता था ये भार
था मैं तैयार
ले जायूँगा इस पार
से उस पार
इन लाशों को
कुछ लाशें मेरे अपनों की थीं
बैठे थे बड़े शौक़ से,
डूब गए रस्ते में ही
जो बैठे थे बड़े यकीन से !
अब हम सफर करते हैं
मैं और मेरी लाशें,
ये लाशें कभी
उँगलियाँ नहीं उठातीं
लगता है
ज्यों मुझे देख हैं मुस्कुरातीं,
उँगलियाँ तो ये लहरें उठातीं हैं
उँगलियाँ तो ये किनारे उठाते हैं
ये हवायें उठातीं हैं
ये किरणें उठाती हैं
इसलिए अब मैं
सिर्फ अपनी लाशों से वास्ता रखता हूँ
इनके ही साथ सफर करता हूँ !
हाँ, एक दिन
मेरी नाव खाली होगी
इसमें कोई लाश नहीं होगी
या सिर्फ एक होगी !
जब ये अपने वज़न से डूब जाएगी
तब ही ये अपने श्राप से उबर पायेगी
मैंने खुद ही चुना था
ये ही तो मेरी आकांक्षा थी
वो श्रेय, वो सम्मान
वो ही तो था मेरा वरदान
श्राप बन जायेगा
था मैं इससे अनजान!
अभ भी बहुतों को
मेरी शापित नाव पर यकीन है
मुझे भी है,
खे रहा हूँ ,
एक पतवार जो वरदान है
दूसरी जो अभिशाप है
चलती है नाव,
नाव के संग मैं, मेरी लाशें
और वो लोग जो पार उतरना चाहते हैं,
और वो लहरें, वो किरणें
वो हवायें, वो किनारे
सब चलते हैं
साथ
क्योंकि मैंने खुद चुना था
मैंने खुद ही तो चुना था!
I am feeling homesick today
at home!
Feeling is same as it was
thirty five years ago
in the hostel
away from my father!
My dad
had key to all the problems
just being with him
and everything was easy!
First time I had this feeling
the day he dropped me to the hostel
and told me that he would return
in few hours,
I knew he always kept his word
he would be back sooner than he said
but he didn't turn up
each minute of the wait
was an inferno
and then my uncle turned up
to fulfill my needs
I was devastated to see him
as I knew he always kept his word
Dad met an acccident
on his way back from the hostel
but all my worries were gone
when I talked to him on phone
all was well, nothing to fear!
Thirty five years later
I again had this feeling
when he messaged me
from the ICU
he said he was going and bade good bye
I broke down
as I knew he always kept his word
I called him back, I could
and told him that he was not going anywhere
he didn't contradict me
he always followed me as a physician
but then wrote a letter
and went far away
so far that I couldn't call him this time,
he always kept his word!
He believed in prayer, in piety
In his Pooja Room, in temples
he prayed to the deity
so that God took care of us,
he would ensure that the idols were
never unattended!
Today, the deity lies unattended,
nobody to take care of the God,
Lifelong
was God taking care of him
or was he taking care of the God?
This home
which I never left
where I always lived with him
this home
makes me homesick today
this home
without my Dad
doesn't feel like home
home, where is it??
This home
that he built
that he built for us
for us to live
and be without fear or worry
this home
is blessed
this home
this very home
is where the home is
and he is there
within us
this home
is the temple
and we are both
the devotee and the deity
and he is there within us
both as the devotee that he was
and the deity that he is!
He is here
with me
just need to recognize
the divine light.
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