कहीं से पकड़ूँ तो कहीं से रिसती है
हर किनारे को छोड़ सिर्फ धारा में बस्ती है
जाने कौन से सफर पे
ये मेरी कश्ती है!!
कहीं से पकड़ूँ तो कहीं से रिसती है
हर किनारे को छोड़ सिर्फ धारा में बस्ती है
जाने कौन से सफर पे
ये मेरी कश्ती है!!
क्षमता हमारे विवेक की
मानव जो भी हैं, हर एक की
यही है
की जानने को कुछ भी
निराकार या साकार
भाव या रूप
उसे एक नाम चाहिए
और उस विचार को
किसी और तक पहुँचाने के लिए भी
एक नाम चाहिए!
नाम उसे भी चाहिए
जो सब कुछ है!
अति-सूक्ष्म से बृहद-व्यापक है
चल-अचल, जड़-चेतन,
आदि-अनंत,
मूढ़ से चेतना तक
विचार से शब्द तक
कुछ नहीं से सब कुछ तक
उसे भी नाम चाहिए!
उसको पहचानने को,
उसके सिमरन को
उससे शिकायत को
उसे याद रखने को
उसे भूल जाने को
नाम चाहिए !
जिस भाव में, जिस रूप में
देखते हैं
वही उसका नाम हो जाता है !
क्योंकि सब कुछ वही है
तो हर नाम उसी का है
पर कुछ नाम बहुत पावन हैं
शुद्ध अंत:करण को करते हैं
जब हम उनको स्मरण करते हैं !
घात - 'घात' शब्द अनेकों रूप में प्रयोग किया जाता है! इसका एक सामान्य अर्थ होता है 'छुप कर वार करना'। घात शब्द का गणित में प...