Saturday, June 11, 2022

किश्ती

कहीं से पकड़ूँ तो कहीं से रिसती है 

हर किनारे को छोड़ सिर्फ धारा में बस्ती है 

जाने कौन से सफर पे 

ये मेरी कश्ती है!!

 

naam uska

क्षमता हमारे विवेक की 

मानव जो भी हैं, हर एक की 

यही है 

की जानने को कुछ भी 

निराकार या साकार 

भाव या रूप 

उसे एक नाम चाहिए 

और उस विचार को 

किसी और तक पहुँचाने के लिए भी 

एक नाम चाहिए!

नाम उसे भी चाहिए 

जो सब कुछ है!

अति-सूक्ष्म से बृहद-व्यापक है 

चल-अचल, जड़-चेतन,

आदि-अनंत, 

मूढ़ से चेतना तक 

विचार से शब्द तक 

कुछ नहीं से सब कुछ तक 

उसे भी नाम चाहिए!

उसको पहचानने को,

उसके सिमरन को 

उससे शिकायत को 

उसे याद रखने को 

उसे भूल जाने को 

नाम चाहिए !

जिस भाव में, जिस रूप में 

देखते हैं 

वही उसका नाम हो जाता है !

क्योंकि सब कुछ वही है 

तो हर नाम उसी का है 

पर कुछ नाम बहुत पावन हैं 

शुद्ध अंत:करण को करते हैं 

जब हम उनको स्मरण करते हैं !



 

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