Sunday, November 4, 2012

andaaz-e-guftgu

'इंशाल्लाह' तुम कहो तो वो एक दुआ है,
वो ही हम कहें तो फलसफा है,
'खुदा हाफ़िज़' तुम्हारा तुम्हारी बात है,
हम कहें तो खोखले जज़्बात हैं,
तुम्हारी बात, तुम्हारे मुद्दे, रोज़  की डायरी है,
हम अपनी बात कहें तो शायरी है
कैसे मैं सम्झायूं आप को ये गहरा राज़,
कविता नहीं ये तो है मेरे गुफ्तगू का अंदाज़
मेरी कविता को न दाद चहिये, न मुरीद,
बात संक्षेप में आप तक पहुँच जाये
बस इतनी है  उम्मीद।

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