Wednesday, March 19, 2014

ye kaisa vasl

ये जो तेरी लम्बी सी आह आई है,
                                                 तू ही बता, दुआ है या दुहाई है?
रु-ब -रु होते ही जो तेरे माथे पे शिकन आयी है,
                                                  इसको वस्ल कहूं या जारी अभी जुदाई है?

ज़िक्र पूरे ज़माने का है, तेरी-मेरी बातों में,
                                                            बस तेरा-मेरा ज़िक्र नहीं,
दिखा रहें हैं दोनों की फ़िक्र तमाम कायनात की  है,
                                                             बस तेरी-मेरी फ़िक्र नहीं,
हम शायद तिफ़्ल थे,
                               पर रिश्ता अपना जवान था,
कभी और कुछ नहीं था,
                                   बस हम दोनों से ही जहान था,

अब बस हम नहीं हैं, मैं हुँ, तू है और पूरी खुदाई है,
                                     तेरी तिरछी सी हंसी में, हंसी शायद नहीं है,
पर तेरी काँपती  पलकों में
                                  यक़ीनन एक रुनाई है,
मैंने कब तुझसे शिकवा किया है,
                                      पर ये भी जानता हूँ,
मेरी काफ़िर निगाहों ने
                                  तुझे एक कहानी सुनाई है!!

Tuesday, March 18, 2014

tu meri ho..li!

देख-देख रंग, रंग संग उड़े है उमंग,
बिन डोर कि पतंग,
मन हो रहा मलंग,
रंग ने रंगा जो रूप तेरा, तेरा रूप-रंग
देखूं तो हूँ दंग, न देखूं तो भी तंग!
रंग ने मिलाई भंग गोरी तेरे रूप में,
मन में उठी तरंग देखो भरी धूप में!

कैसे हैं करारे,
गोरी तेरे गार प्यारे,
हैं जीने के सहारे,
या लेंगे चैन हमारे,
धीरे-धीरे मारे जो तू पिचकारी धारे
ध्यान संग प्रान भी खींच ले हमारे। 

परा जो पानी तोहपे, बदला रंगों के ताल में,
गिरते-गिरते कह रहा, न छोड़ो इस हाल में,
कर रही कमाल तू होरी के धमाल में,
या होरी का बवाल है तेरे ही जमाल में। 

जैसे रंग मिल रहे,
यों तोहसे मिलने कि गुहार है,
अपनी नहीं ये,
इनकी भी मनुहार है,
नशा है तेरे रूप का,
या होरी की  फुहार है,
 बावरे हुए हैं बस,
ये ही समाचार है,
ये ही समाचार है!

Tuesday, March 4, 2014

rahu kalam

जैसे कि ' राहु काल' था,
अचानक सर से हट गया,जो  बवाल था।
कभी क्या खूब था,
फिर गया  सारा तिलस्म डूब था।
फिर नज़र आने लगा है एक ताज महल
फिर उसमे क़दमों कि है चहल-पहल,
जनाब! मैं तो वोही था, हूँ और है मुमकिन,
कि रहूँ,
ये तो आपकी शाही नज़र है,
जो कभी नज़रे-शिकायत थी,
वो फिर नज़रे-इनायत है,
यूं लगता है कभी, कि हमारी ज़िन्दगी
सफाई देने कि एक कवायद है।
अरे अरे रुको, चल दो न यूँही
ये शिकायत नहीं, ये तो मेरी खुद से गुफ़तगू है,
कम से कम अभी तो  नज़रे करम है
इतना ही सुकून है!

आघात या घात का तात्पर्य

 घात - 'घात' शब्द अनेकों रूप में प्रयोग किया जाता है! इसका एक सामान्य अर्थ होता है 'छुप कर वार करना'। घात शब्द का गणित में प...