सम्पूर्ण साक्षात्कार
शीतल पवन करे यूं भ्रमण,
ज्यों चपल चंचला नार कोई,
धवल चांदनी, श्यामल रात,
उज्ज्वल तारे अपार कई,
ऋतु मीराबाई,
सिमरन करते जो श्याम का
है पागल भई
सुन्दर सुगंध सुमधुर संगीत,
है बज रही पवित्र झंकार कोई,कोपल कपोल कोमल कोमल,
नहीं मोहिनी यही प्रकार कोई,
अति आनंदित प्रसन्नचित,
कर रहा मुझे विचार कोई,
स्वच्छ मन आनंद विभोर,
मिला रस का सागर कोई,
निष्पाप हुआ जग, सरल सब कर्म,
मलीन नहीं विचार कोई,
मुक्त हृदय, सुशोभित चित्त,
है कर गया श्रृंगार कोई,
हे प्रभु सम्पूर्ण हो,
नहीं ऐसा और साक्षात्कार कोई!
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