Sunday, September 9, 2012

Phagun nahin Bhadon hai

कितनी  करते हो  मनमानी,
जब जी  चाहा जितना , बादलों में छुप, फ़ेंक दिया पानी,
होली  खेल रहे हो भाद्रपद में,
शायद चूर हो भगवान  होने के मद में,
चाहें ना चाहें ठिठोली  करते हो हमसे,
तुम्हें क्या लेना हमारी ख़ुशी से, हमारे गम से,
अवसर की प्रतीक्षा है हमें,
मन भर के भिगोएँ तुम्हें और रंगें,
लेंगे हम भी तुम्हें आड़े हाथों,
बस जाड़े आने दो!
kitni karte ho manmaani,
jab jee chaha jitna, baadlon mein chhup, phenk diya paani,
holi khel rahe ho bhadrapad mein,
shayad choor ho, bhagwan hone ke mad mein
chaahein na chaahein, thitholi karte ho humse
tumhein kya lena hamari khushi se, hamare gam se
awsar ki prateeksha hai humein
man bhar ke bhigoyein tumhein aur rangein
lenge hum bhi tumhein aade hathon
bas jaade aane do!

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