यूं भी मिलते हैं ज़मीन-आसमान!
तुझे कब कौन बाँध सका है,
पैमानों से नाप सका है,
तेरी परवाज़ बेपरवाह है,
तुझे कौन सा सूरज ताप सका है।
मैं तो तुझे सिर्फ देख सका हूँ,
मेरे तो पर ही नहीं,
तेरी उड़ान पर हैरां हूँ,
मेरा तो इस ज़मीन के सिवा कोई घर ही नहीं।
तुझे छूने हैं कई आसमां
मुझे रखने हैं पाँव ज़मीं पर,
पर मैं तुझसे बेशक मिलूंगा,
जब तू लौटेगा यहीं पर।
यूं भी मिलते हैं ज़मीन आसमां,
कि आसमां ज़मीं की निगाह में रहता है,
रहे कहीं भी,
नम तो ज़मीं को ही होना है,
आंसू आसमान का
गिरे कहीं भी।
तुझे कब कौन बाँध सका है,
पैमानों से नाप सका है,
तेरी परवाज़ बेपरवाह है,
तुझे कौन सा सूरज ताप सका है।
मैं तो तुझे सिर्फ देख सका हूँ,
मेरे तो पर ही नहीं,
तेरी उड़ान पर हैरां हूँ,
मेरा तो इस ज़मीन के सिवा कोई घर ही नहीं।
तुझे छूने हैं कई आसमां
मुझे रखने हैं पाँव ज़मीं पर,
पर मैं तुझसे बेशक मिलूंगा,
जब तू लौटेगा यहीं पर।
यूं भी मिलते हैं ज़मीन आसमां,
कि आसमां ज़मीं की निगाह में रहता है,
रहे कहीं भी,
नम तो ज़मीं को ही होना है,
आंसू आसमान का
गिरे कहीं भी।
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