Sunday, September 9, 2012

tumhein hi uthana hai jag ka bhaar, he krishn! sheeghra bade ho jaayo

उस रात मैं कृष्ण के बारे में  सोचता हुआ सो गया
न जाने कब सवेरा हो गया
झाँकने पर, मेरे कमरे का झरोखा, मुझे झकझोर गया
अनेकोअनेक  कृष्ण थे
सभी सुंदर, तेज से तृप्त, दृश्य एक आलौकिक
पर  क्षुब्ध थे
चेहरे पर मुस्कान नहीं, व्यथित
चक्षु कुछ खोजते
मानो दबे हों संसार के बोझ से
मुझे स्मरण हो आया
की "हे कृष्ण तुम पर बड़ा भार है,
समय पर विपत्तियों का अम्बार है"
किन्तु कृष्ण तो जग की पीड़ा हरते हैं
भला  उनकी कुंठा कौन हरेगा
तभी दृश्य बदला
सभी कृष्ण मुस्कुरा उठे, ऊर्जा का संचार हुआ
कृष्ण की भाँती नटखट हुए, मानो कृष्णमई संसार हुआ
वो सब प्रसंत्ता से एक दिशा में देख रहे थे
कौन है जिसने कृष्ण को फिर से  कृष्ण किया
उत्सुक हो मैंने भी उसी ओर ध्यान किया
हे कृष्ण, क्या देखता हूँ
एक और कृष्ण,
अपने ही तेज में लिप्त, चले आ रहे हैं
 ठीक ही तो है, कृष्ण का कष्ट भी कृष्ण ही काटेंगे
पीताम्बर, सर पे मुकुट, अंगवस्त्र
एक हाथ में बांसुरी और दुसरे में बस्ता
आये, बैठे और सभी कृष्णो को ले
स्कूल वैन चली गयी
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
'शुभ जन्माष्टमी' - टाइम्स ऑफ़ इंडिया में २५/०८/२०१६, जन्माष्टमी के पर्व पर प्रकशित चित्र! 

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