पाषाण है, भगवान नहीं
मत कर ये तपस्या,
मैं कोई भगवान नहीं जो पिघल जायुं,
मैं तो मात्र मनुष्य हूँ!
नहीं अधिकार मुझे संविधान बनाने का,
नहीं योग्य मैं सही-गलत का अनुमान लगाने का,
मुझे तो केवल अनुकरण करना है,
इन सिद्धांतों का अनुसरण करना है,
यदि नियम वही हैं
तो निर्णय भी वही है,
भला मैं कैसे बदल सकता हूँ,
जा किसी और ब्रह्माण्ड में,
जिसमे धर्म अलग हो,
जहाँ तेरी अभिलाषा के अनुरूप
बदले तर्कों का स्वरुप
ये भक्ति नहीं, ये हठ है
यहाँ नहीं अब किसी को होना प्रगट है,
मत कर अब और प्रयत्न,
छोड़ दे ये यज्ञ, ये सारे यत्न!
जा मत मांग मानव से
मानव तो अक्षम है
मनुष्य के लिए तो तेरी याचना ही पाप है,
तेरी सोच अक्षम्य है!
मत कर ये तपस्या,
मैं कोई भगवान नहीं जो पिघल जायुं,
मैं तो मात्र मनुष्य हूँ!
नहीं अधिकार मुझे संविधान बनाने का,
नहीं योग्य मैं सही-गलत का अनुमान लगाने का,
मुझे तो केवल अनुकरण करना है,
इन सिद्धांतों का अनुसरण करना है,
यदि नियम वही हैं
तो निर्णय भी वही है,
भला मैं कैसे बदल सकता हूँ,
जा किसी और ब्रह्माण्ड में,
जिसमे धर्म अलग हो,
जहाँ तेरी अभिलाषा के अनुरूप
बदले तर्कों का स्वरुप
ये भक्ति नहीं, ये हठ है
यहाँ नहीं अब किसी को होना प्रगट है,
मत कर अब और प्रयत्न,
छोड़ दे ये यज्ञ, ये सारे यत्न!
जा मत मांग मानव से
मानव तो अक्षम है
मनुष्य के लिए तो तेरी याचना ही पाप है,
तेरी सोच अक्षम्य है!
No comments:
Post a Comment