हिरणी का ध्येय ** (see below for another version)
मात्र एक हिरणी थी वो,
फिर भला कैसे सामान्य से विलक्षण हुई?
मातृ-हिरणी थी वो
होना ही था उसे, जननी वो जिस क्षण हुई!
वन में विचरण कर रही थी,
उदर में शिशु को लिए,
कुछ भोज्य खोजती
शिशु के उदर के लिए!
शीघ्र ही उसे प्रसव से पारित होना होगा,
घड़ी अब दोनों की परीक्षा की थी,
तृष्णा उसे कस्तूरी की नहीं
अब केवल सुरक्षा की थी।
पर क्या इस रात इस वन में
सुरक्षा भी उसके लिए मृगतृष्णा बन रह जाएगी?
क्या वो माँ बनने से पूर्व ही
मृगया पर निकले आखेटक का जयचिन्ह बन रह जाएगी?
अनभिज्ञ किसी विपत्ति से
ढूंढ लिया वो स्थान जो बिछा था सूखी फूल-पत्ती से,
संभवत: अनुकूल ये स्थान होगा शिशु के जन्म का,
कहाँ विदित था की एक सिंह को अभिज्ञान होगा उसकी गंध का।
भाँपने लगी थी वो
कि बायीं ओर के झुरमुट में छिपा है आखेटक
और दायीं दिशा में सिंह खड़ा है आँखें लगाये एक टक
किन्तु भागना तो दूर हिलना भी असंभव था
आरम्भ हो चूका प्रसव था।
मानो आकाश को अपने अस्तित्व की चिंता लगी,
भला ये हिरणी क्यों न डर से मरी ?,
तभी आकाश से दामिनी
दावाग्नि बन वहीँ सूखे पत्तों पर गिरी,
और चेतावनी से चुनौती बनी।
नीरद ने भी पूरी शक्ति से नाद किया,
तब उस हिरणी ने केवल अपने ध्येय को याद किया।
"बनूँगी व्याध का लक्ष्य, या सिंह का ग्रास,
अग्नि तपाती मुझे, नभ भी देता त्रास,
अवश्य ही घिरी चहुँ ओर से हूँ,
किन्तु जुड़ी अपने शिशु से एक डोर से हूँ,
इस समय केवल जनना मेरा कर्म है,
मुझे इन सबकी व्यथा नहीं,
सरल बहुत ही मेरा धर्म है"
द्रवित हुआ व्याध देख कर नवजात छौना,
जल में प्रतिबिम्ब अपना प्रतीत हुआ घिनौना,
तब दिव्य होने का अवसर उसने नहीं गँवाया
और एक ही बाण में क्षुधित सिंह को मार गिराया,
मेघों ने भी अपना आशीष बहुत बरसाया
और दावानल को पल में भस्म बनाया।
अकस्मात् ही परिस्थिति सम्पूर्णत: बदल गयी
ध्येय पर केंद्र से, सारी विपदा टल गयी।
बड़े ही गर्व और स्नेह से लाड कर
वो हिरणी बोली शिशु को चाट कर
कि जीवन अपनी संतान को माँयें देती हैं सभी
किन्तु नवजात शिशु अपनी माँ को जीवन दे
क्या ऐसा देखा है कभी!
(For a simpler version see after the story)
Inspired from the following whatsapp story!
THE PREGNANT DEER
In a forest, a pregnant deer is about to give birth.
She finds a remote grass field near a strong-flowing river.
This seems a safe place.
Suddenly labour pains begin.
At the same moment, dark clouds gather around above & lightning starts a forest fire.
She looks to her left & sees a hunter with his bow extended pointing at her.
To her right, she spots a hungry lion approaching her.
What can the pregnant deer do?
She is in labour!
What will happen?
Will the deer survive?
Will she give birth to a fawn?
Will the fawn survive?
Or will everything be burnt by the forest fire?
Will she perish to the hunters' arrow?
Will she die a horrible death at the hands of the hungry lion approaching her?
She is constrained by the fire on the one side & the flowing river on the other & boxed in by her natural predators.
What does she do?
She focuses on giving birth to a new life.
The sequence of events that follows are:
- Lightning strikes & blinds the hunter.
- He releases the arrow which zips past the deer & strikes the hungry lion.
- It starts to rain heavily, & the forest fire is slowly doused by the rain.
- The deer gives birth to a healthy fawn.
In our life too, there are moments of choice when we are confronted on αll sides with negative thoughts and possibilities.
Some thoughts are so powerful that they overcome us & overwhelm us.
Maybe we can learn from the deer.
The priority of the deer, in that given moment, was simply to give birth to a baby.
The rest was not in her hands & any action or reaction that changed her focus would have likely resulted in death or disaster.
Ask yourself,
Where is your focus?
Where is your faith and hope?
In the midst of any storm, do keep it on God always.
He will never ever dissapoint you. NEVER.
Remember, He neither slumbers nor sleeps.
-Unknown
कभी आम सी ज़िन्दगी में,
केवल सोच की सरलता से,
दिव्य बन जाते हैं जीव,
छुटकारा पाते अपनी दुर्बलता से।
गर्भ से एक हिरणी थी,
उस जंगल की रात में,
रह-रह कर बिजली चमकती थी,
और वो भीग रही थी बरसात में,
बच्चे को जन्म देने को
ढूंढती थी ठीक सी कोई जगह
मन में कुछ डर भी था
न जाने किस वजह।
घने पेड़ो से निकलकर
पहुंची एक नदी के पास,
एक मचान नज़र आई
जिसके नीचे थी कुछ सूखी घास,
"यहीं जन्म दूँगी अपनी संतान को"
पूरी होने को थी अब उसकी आस!
पर मन फिर खटका,
भरे जंगल में ख्याल आ रहे थे शमशान के,
मालूम न था कि
एक शिकारी बैठा है, ऊपर मचान के !
पास ही एक शेर भी था
यूं तो नदी से पानी पीने आया था,
पर हिरणी को देख
उसके मुँह में पानी आया था।
जान लेने को किसी प्राणी की
बस खतरा एक ही काफी होता है,
न जाने उस हिरणी की क्या किस्मत थी
कहते हैं कभी बुरा वक़्त हावी होता है।
इतने में बिजली गिरी बड़ी ज़ोर से
और वो आग से घिर गयी चारो ओर से।
शिकारी का शर,
शेर का डर,
आग की लपटें,
भला कोई तीन-तीन मुश्किलों से
कैसे निपटे!
ऊपर से शुरू हुआ प्रसव का दर्द,
ऐ भगवान मदद, मदद!
अचानक न जाने कहाँ से मन में विश्वास आ गया,
बच्चे के प्यार की सोच से, उसे फिर सांस आ गया!
"बस एक मेरा काम है
और कर सकती हूँ क्या,
अपनी जान की मुझे परवाह नहीं,
बच जाये बस जो जीवन दूँगी नया!"
फिर आँखें मूँद कर
जन्म वो देने लगी
परायी थी जो परिस्थिति
यकायक होने लगी सगी,
शिकारी का बाण उसके धनुष से निकल गया
पर शायद उसका मन पिघल गया
हिरणी को छोड़ उसने शेर को मार गिराया
और तभी बादलों ने भी खूब पानी बरसाया
बुझ गयी सारी आग,
खुल गए हिरणी के भाग!
अपने सुन्दर शिशु को देख बस रम गयी
आँखों से बहने लगी वो बरसात
जो आसमान से थी थम गयी,
वो बोली "जीवन अपनी संतान को माँयें देती हैं सभी
किन्तु नवजात शिशु अपनी माँ को जीवन दे
क्या ऐसा देखा है कभी"!